भारत में बच्चों में मोटापा बनी नई स्वास्थ्य आपदा, फास्ट फूड प्रमुख कारण

भारत में बचपन का मोटापा तेजी से बढ़ता हुआ एक गंभीर स्वास्थ्य संकट बन चुका है। पहले यह समस्या केवल बड़े शहरों तक सीमित थी, लेकिन अब यह देशभर में बच्चों को प्रभावित कर रही है। विशेषज्ञों का कहना है कि यह सिर्फ वजन बढ़ने की समस्या नहीं, बल्कि मधुमेह, हाई बीपी, हार्ट डिजीज और मानसिक तनाव जैसी बीमारियों का शुरुआती संकेत है।

UNICEF के आंकड़ों के अनुसार, पांच साल से कम उम्र के बच्चों में मोटापे की दर पिछले दस साल में दोगुनी हो गई है। NFHS-5 के मुताबिक, 2005–06 से 2019–21 के बीच कम उम्र के बच्चों में ओवरवेट की दर 127% बढ़ी है। स्कूल-गोइंग बच्चों में मोटापा लगभग 8.4% है, और 2030 तक भारत में 2.7 करोड़ मोटे बच्चे होने का अनुमान है।

फास्ट फूड सबसे बड़ा खतरा

चिकित्सक मानते हैं कि फास्ट फूड संस्कृति इस बढ़ते खतरे का मुख्य कारण है। भारत में अल्ट्रा-प्रोसेस्ड फूड की बिक्री 2006 से 2019 के बीच 40 गुना बढ़कर $38 बिलियन हो गई। जंक फूड में मौजूद अतिरिक्त शुगर और फैट बच्चों को जल्दी आकर्षित करते हैं और उनकी भोजन आदतों को बिगाड़ते हैं।

लाइफस्टाइल बदलाव भी वजह

7–8 घंटे की औसत स्क्रीन टाइम, खेलकूद की कमी, पैक्ड स्नैक्स की बढ़ती खपत और COVID-19 लॉकडाउन के कारण वजन में अचानक वृद्धि देखी गई। खराब डाइट, नींद की कमी और माता-पिता की व्यस्तता भी मोटापे को बढ़ावा देते हैं।

समाधान क्या है?

डॉक्टर्स रोजाना कम से कम 60 मिनट फिजिकल एक्टिविटी, घर का बना संतुलित भोजन, मीठे पेय से दूरी और जंक फूड पर सीमित नियंत्रण की सलाह देते हैं। स्कूलों में पोषण शिक्षा और सरकार द्वारा बच्चों के लिए जंक फूड विज्ञापनों पर नियंत्रण भी जरूरी बताया जा रहा है।

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